यह घटना चार साल पहले की है, मीत
उम्र में मुझसे चार साल छोटा था पर
कुछ सालों से साथ क्रिकेट खेलने, साथ
स्कूल आने-जाने से
हमारी दोस्ती गहरी हो गई थी और
इससे दोनों के परिवारों में
भी घनिष्ठता हो गई थी। हम रोज़
एक दूसरे के घर आते-जाते थे। मैं
अपना होमवर्क भी उसके साथ उसके
घर पर ही करता था,
वहीं खेलता भी था।
कुल मिलाकर मेरा ज्यादातर समय
उसके घर पर ही बीतता था। मीत के
पापा शरद अंकल का मुंबई और दुबई में
हेण्डीक्राफ्ट के एक्स्पोर्ट
का अच्छा बिज़नेस था। इस सिलसिले
में वो लगभग हर सप्ताह दुबई आते-
जाते थे। मीत
की मम्मी स्वाति आंटी 35-36
साल की पढ़ी लिखी, हाई
सोसायटी की समझदार महिला थी।
सुगठित शरीर, लम्बी टागें, उन्नत
उरोज़ एवं बडे-बडे नितम्बों से
सुशोभित स्वाति आंटी इतनी सुन्दर
थी कि उनके आगे कोई
अप्सरा भी फीकी पड़े।
चाहे वो साड़ी पहनें, सलवार
कुर्ता पहनें या कोई मॉडर्न
आउटफिट, उन्हें देख कर
किसी का भी ईमान
डगमगा सकता था, फ़िर
मेरी तो उम्र ही बहकने
की थी इसलिये मैं कभी-
कभी उनकी कल्पना कर के हस्तमैथुन
भी करता था।
खैर, उस साल दिसम्बर
की छुट्टियों में मीत
अपनी सौम्या बुआ के पास दुबई अपने
पापा के साथ जाने वाला था।
24 दिसम्बर को जब मैं मीत के घर
गया तब अकंल, आँटी ने मुझे कहा- भले
मीत यहाँ नहीं हो, तो भी तुम रोज़
हमारे घर आना, अपना होमवर्क
भी यहीं करना, वीडियो गेम
खेलो और टीवी देखो।
वे दोनों यह चाहते थे कि मैं उनके घर
ज्यादा से ज्यादा समय बिताऊँ
जिससे स्वाति आंटी का मन
भी लगा रहेगा। अंकल ने मुझे घर
का ख्याल भी रखने के लिये कहा जिसे
मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
अगले दिन अंकल और मीत सुबह
जल्दी दुबई के लिये रवाना हो गये।
छुट्टियाँ तो थी पर थोड़ा होमवर्क
भी मिला था, इसलिये सुबह मैं लगभग
9 बजे जरूरी किताबें बैग में लेकर मीत
के घर चला आया। तब
स्वाति आंटी नीले गहरे गले वाले
प्रिन्टेड गाऊन के ऊपर कशीदे वाले
हाउसकोट में गज़ब की सुन्दर लग
रही थी।
मुझे मीत के स्टडी रूम में बिठा कर
थोड़ी देर मेरे पास बैठकर इधर-उधर
की बातें करने के बाद वो अपने काम
से रसोई में चली गई और
कामवाली बाई को काम समझाकर
उन्होंने मुझे आकर कहा- मैं नहाने
जा रही हूँ, जब
कामवाली अपना काम करके
चली जाये तो घर का दरवाज़ा अन्दर
से बन्द कर लेना।
थोड़ी देर बाद जब कामवाली बाई
अपना काम पूरा करके चली गई, मैंने
उठ कर घर का दरवाज़ा बन्द कर
दिया। अब मैं और स्वाति आंटी घर में
अकेले थे, बाथरूम से आंटी की गुनगुनाने
की आवाज़ से माहौल की मादकता बढ़
रही थी। अचानक आंटी के
प्रति मेरी वासना बलवती होने
लगी।
मीत के कमरे और स्वाति आंटी के
बेडरूम के बीच में एक कोमन
दरवाज़ा था। मैंने चुपचाप जाकर उसे
थोड़ा खोल दिया ताकि मैं
आंटी को बिना कपड़ों के देख सकूँ।
थोड़ी बाद स्वाति आंटी कोई गीत
गुनगुनाते हुए बाथरूम से निकली और
अपने गीले बदन को पौंछने लगी। मैं
दबे पांव उस थोड़े खुले दरवाज़े
की तरफ गया और वहाँ बैठ कर जन्नत
का नज़ारा देखने लगा।
स्वाति आंटी जितनी कपड़ों में सुन्दर
दिखती थी उससे कहीं ज्यादा कामुक
वो बिना कपड़ों के दिख रही थी।
गोरे-गोरे मांसल उरोज़ों पर उभरे
हुए गुलाबी निप्पल गज़ब लग रहे थे,
वहीं पतली कमर के नीचे
दोनों जाघों के बीच हल्के
बालों वाली गुलाबी योनि तो
कयामत ढा रही थी।
तौलिए से बदन पोंछने के बाद उन्होंने
अपनी बग़लों और गले पर डेओडोरेंट
स्प्रे किया, सफेद रंग
की लिन्गरी पहनी और
गुलाबी पेटीकोट भी ऊपर से
पहना फिर उन्होंने सफेद
ब्रा पहनी।
और मैं चुपचाप उठ कर अपनी जगह
आकर बैठ गया और मैगज़ीन पढ़ने
लगा पर आखों में
स्वाति आंटी का मादक बदन ही घूम
रहा था।
तभी स्वाति आंटी की आवाज़ आई-
प्रीत क्या कर रहे हो? कोई
आया तो नहीं था?
मैं बोला- 'आंटी... मैं मैगज़ीन पढ़
रहा हूँ और बाई के जाने के बाद कोई
नहीं आया था... मैंने
दरवाजा भी बन्द कर दिया है।
आंटी ने कहा- कुछ नहीं कर रहे
हो तो एक बार इधर आओ, मुझे कुछ
काम है।
मैं उठ कर उनके बैडरूम में गया,
स्वाति आंटी ब्रा और पेटीकोट में
खड़ी थी और कंधे के ऊपर रखे तौलिये
से ब्रा ढकी हुई थी। वो बोली-
सर्दी से मेरी पीठ बहुत ड्राई
हो रही है, थोड़ी माईश्चराइज़र
क्रीम लगा दोगे?...वहाँ ड्रेसिंग
टेबल के ऊपर रखी है।
मैं मन ही मन चहकते हुए बोला-
अभी लाया आंटी...!
और ड्रेसिंग टेबल के ऊपर
रखी निविया की बोतल ले आया। तब
तक स्वाति आंटी बैड पर उल्टी लेट
चुकी थी, अब तौलिया उनकी पीठ
पर ढका था। सच कहूँ तो उस वक्त मैं
अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझ
रहा था कि मुझे उनके बदन को छूने
का मौका मिलेगा।
उन्होंने मुझे बैड पर उनके बगल में बैठ
कर तौलिया हटा कर पीठ पर क्रीम
लगाने को कहा।
मैंने तुरन्त तौलिया हटा कर पहले
उनकी चिकनी पीठ पर हाथ
फिराया फिर क्रीम हाथ में लेकर
लगाने लगा।
तभी वो खुद बोलीं- ब्रा का हुक
खोल दो, नहीं तो क्रीम से
गीली हो जायेगी।
मैंने तुरन्त दोनों हाथों से ब्रा के हुक
खोल कर उनकी उरोज़ों को आज़ाद कर
दिया और हल्के हाथ से उनकी नर्म
चिकनी पीठ पर क्रीम लगाने लगा।
मुझे तो स्वर्ग का आनन्द मिल
रहा था, शायद
उनको भी अच्छा महसूस
हो रहा था तभी वो बीच-बीच में
'आह' 'उह' की दबी आवाज़ें कर
रहीं थी। एकाध बार मेरा हाथ
गलती से उनके उरोज़ों से छू
गया तो मैं सिहर उठा।
कुछ देर में वो माहौल
की चुप्पी तोड़ते हुए बोली-
प्रीत...जब मैं कपड़े पहन रही थी तब
तुम स्टडी रूम से क्या देख रहे थे?
मैं घबराकर बोला-
नहीं तो...आंटी मैंने कहाँ कुछ देखा...!
शायद उन्होंने आईने में मुझे अपने
आपको देखते हुए देख लिया पर मुझे
इसका पता नहीं चला।
स्वाति आंटी मुस्कुराते हुए बोली-
झूठ मत बोलो...मैंने तुम्हें मिरर में देख
लिया था!
मैं एकदम सकपका गया, मुझसे कुछ
बोलते नहीं बन रहा था...मैं सिर
नीचे कर बैठा रहा।
वो फिर हंसते हुए बोली- क्या देख
रहे थे...ये...?
कहते हुए मेरी तरफ घूम गई।
अब उनके गोरे उरोज़ मेरे ठीक सामने
थे और दिल कर रहा था उनको मसल
दूं, पर डर रहा था।
आंटी फिर बोली- डरो मत...टच
करो...!
मैं फिर भी डर रहा था...तब उन्होंने
मेरा हाथ पकड़ कर अपने गर्म
उरोज़ों पर रख दिया। मुझे तो जैसे
स्वर्ग मिल गया, मैं धीरे-धीरे
दोनों हाथों से उनके गोरे-गोरे
मांसल उरोज़ों को दबाने लगा।
स्वाति आंटी ने मादक स्वर में कहा-
धीरे नहीं...ज़ोर से दबाओ...और मुँह में
ले कर चूसो...आहह...वाह...और ज़ोर
से...उफ़!
अब मैं भी खुल कर उनके उरोज़ों दबाने
लगा और उनके
गुलाबी निप्पलों को मुँह में लेकर चूसने
लगा था। अचानक मुझे हटा कर
वो बैठ गई और मेरी टी-शर्ट पकड़
कर ऊपर कर दी, मैंने भी हाथ
उठा कर टी-शर्ट व बनियान उतार
फेंकी और उनको सीने से
लगा लिया और उनके कन्धों, गर्दन
और होठों को चूमने, चाटने लगा।
मुझे अनाड़ीपन से चूमते, चाटते हुए
देखकर हंसते हुए स्वाति आंटी ने पूछा-
पहले कभी किया है...?
मैंने शर्माते हुए ज़वाब दिया-
नहीं...पर ब्लू फिल्म में बहुत बार
देखा है।
यह सुनकर उन्होंने मुझे पकड़ कर बैड
पर लिटाया और मेरे घुटनों पर सवार
हो कर उन्होंने मेरी पैन्ट के हुक खोले,
फिर उसे खोल कर दूर फेंक दी और
अपने हाथ मेरे अन्डरवियर के ऊपर मेरे
कठोर लिंग पर फिराने लगी।
फिर स्वाति आंटी ने धीरे से
मेरा अन्डरवियर खोल कर लिंग
को बाहर निकाला और उसे चूमने,
चूसने लगी। सचमुच...वो पल मेरे जीवन
के सबसे हसीन पल थे। थोड़ी देर चूसने
के बाद वो घुटनों के बल बैठी और
अपने पेटीकोट की डोरी खोलकर उसे
उतार फेंका। अब वो केवल पैन्टी में
थी, मैंने उन्हें बाहों में भरकर
लिटा दिया और
उनकी पैन्टी को चूमने लगा।
आंटी सिसकारते हुए बोली-
प्लीज़...प्रीत...पैन्टी खोल कर
चूसो ना।''
मैं बिना वक्त गंवाये दोनों हाथों से
पैन्टी खोल कर
स्वाति आंटी की गुलाबी मखमली
योनि में अपनी ज़ीभ डाल दी और
होंठों से चूस कर रस पीने लगा।
वो भी दोनों हाथों से मेरे बालों पर
हाथ फिराते हुए मेरा सिर अपने अंदर
दबाने लगी और उत्तेजना के साथ
कराहने लगी- आह्ह...प्रीत...प्लीज़…
और ज़ोर से...उफ़...और अन्दर तक
डालो...अब तक तुम
कहां थे...प्लीज़...क्रश मी हार्ड…!
कहते हुए उन्होंने मुझे अपने ऊपर लेकर
मेरे दोनों हाथ पकड़ कर अपने
उरोज़ों पर रख लिये और अपनी टांगे
चौड़ी कर के कहा-
प्लीज़...प्रीत...फक मी...अब
नहीं सहा जाता!''
मैंने तुरन्त अपने लिंग को पकड़ कर
स्वाति आंटी की योनि के छेद पर
रखा और झटके से अन्दर घुसा दिया,
फिर धीरे-धीरे कूल्हों से प्रहार
करने लगा।
हर झटके के साथ आंटी की मादक चीख
से मेरा जोश बढ़ता जा रहा था,
आंटी उत्तेजना से चीख रही थी-
आह्ह...वाओ...यस...वेरी गुड...और ज़ोर
से...करते रहो...तुम सच में बहुत अच्छे
हो प्रीत…!
मैं धक्के लगाता रहा पर मैं
थोड़ी ही देर में चरम पर था इसलिये
आंटी से बोला- आंटी...मैं फिनिश होने
वाला हूं...क्या करूं...?
उत्तेजना में स्वाति आंटी बोली-
रुको नहीं...प्रीत...करते
रहो...प्लीज़...और जोर
से...आह...अन्दर ही छोड़
देना...रुकना नहीं!
हालांकि मैं कई सालों से हस्तमैथुन
करता था पर यह मेरा पहला सैक्स
अनुभव था इसलिये उत्तेजना में
ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया झटके
देते हुए स्खलित हो गया पर
स्वाति आंटी अब तक चरम पर
नहीं पहुँची थी इसलिये मैंने प्रहार
जारी रखे। कुछ समय तक और
प्रहारों के बाद मादक
सिसकारियों के साथ
स्वाति आंटी भी अपने चरम पर पहुँच
कर निढाल हो गई और मैं भी उनसे
अलग होकर पास में ही लेट गया,
आंटी ने अपना सिर मेरे सीने पर रख
दिया और लेटी रही।
उन्होंने पास रखी रजाई हमारे ऊपर
डाल ली और सैक्स की थकान के कारण
हम दोनों कब नींद के आग़ोश में चले
गये पता ही नहीं चला।
लगभग डेढ घन्टे सोने के बाद
स्वाति आंटी की आवाज से मेरी नींद
खुली तो मैंने देखा कि वो हाउसकोट
पहने मेरे पास पलंग पर
बैठी मुस्कुरा रही थी पास में चाय
की ट्रे रखी थी।
वो बोली- जल्दी से उठ कर चाय
पी लो।
मैं रजाई में बिना कपड़ों के था और
शर्म के मारे उनसे नज़रें
नहीं मिला पा रहा था, इसलिये
धीरे से बोला- आंटी...मेरे कपड़े...?
स्वाति आंटी खिलखिला कर हंसते हुए
बोली- अभी तक शरमा रहे हो...पहले
चाय पी लो...फिर शावर लेकर कपड़े
भी पहन लेना...ठीक है...?
मैं भी आज्ञाकारी बालक के जैसे तुरन्त
उठ कर बैठ गया। वो सामने
कुर्सी पर बैठ गई, उन्होंने अपनी और
मेरी चाय सर्व की और मादक स्वर में
बोलीं- प्रीत...आज बहुत टाईम बाद
किसी का साथ इतना एन्जोय
किया है...सच में बहुत
मजा आया...वरना...!
कह कर स्वाति आंटी रुक गई, फिर खुद
ही स्पष्ट करते हुए बोलीं- वैसे
तो...मीत के डैडी बैड में अच्छे हैं
पर...बिज़नेस टूअर्स के बिज़ी शेड्यूल के
कारण कभी तो उनको टाईम
ही नहीं मिलता...और
कभी वो इतना थके होते हैं कि उनमें
सैक्स के लिये ताकत
ही नहीं बचती...।
"खैर...अब तुम मिल गये हो, तो मुझे
किसी की जरूरत ही नहीं...तुम सचमुच
बहुत अच्छे हो...अब उठ कर
नहा लो...तब तक मैं खाने को कुछ
बना लेती हूँ...बहुत भूख
लगी है...तुमको भी भूख लगी होगी।"
ऐसे कह कर उन्होंने एक
तौलिया मेरी तरफ उछाल
दिया जिसे लपेट कर मैं बाथरूम
की ओर बढ़ गया।
बाथरूम में घुसने से पहले मैंने
स्वाति आंटी का हाथ पकड़ कर कहा-
आप भी आओ ना...साथ में शावर लेंगे।
आंटी ने कहा- यू
नोटी बोय...अभी नहीं...अभी तुम
शावर ले कर आओ...फिर हम लंच कर लेते
हैं और वैसे भी अगले सात दिन मैं और
तुम बहुत एन्जोय करने वाले हैं।
कह कर वो हाथ छुड़ा कर रसोई
की ओर बढ़ गई और मैं बाथरूम में
शावर लेने चला गया। जब
लौटा तो बैड पर मेरे कपड़े रखे थे
जिन्हें पहन कर मैं ड्राईंग रूम में आकर
सोफे पर बैठ गया,
तभी स्वाति आंटी सलवार कुर्ते के
ऊपर गर्म जैकेट पहने रसोई से लंच
की ट्रे लिये बाहर आई और मुझे
डाईनिंग टेबल पर आने को कहा।
फिर हम दोनों साथ बैठ कर लंच करने
लगे, तब आंटी बोली- प्रीत...मैंने
तुम्हारी मम्मी से तुम्हारे रात
को मेरे पास रुकने की बात कर
ली है...अभी लंच लेकर तुम घर जाकर
अपना वहाँ का काम निपटा लो...।
"और हाँ...थोड़ा आराम भी कर
लेना...आज सारी रात मैं तुमको सोने
नहीं दूँगी!'' स्वाति आंटी ने
शरारती अंदाज़ में कहा।
लंच लेकर मैं उठा, हाथ धोये और
स्वाति आंटी को बाहों में भर कर
होंठों से होंठ मिला कर गहरा चुम्बन
लिया और रात को मिलने
की प्रोमिस के साथ अपने घर
चला आया, पर मेरा मन तो रात के
इन्तज़ार में अधीर हुआ जा रहा था।
थोड़ी थकान महसूस हुई तो सो गया।
दो घन्टे बाद मम्मी ने
उठाया तो उठ कर दोस्तों के साथ
खेलने चला गया, जब शाम हुई तो घर
लौट कर थोड़ी देर टीवी पर मैच
देखा तब तक मम्मी शाम के खाने के
लिये आवाज़ लगा चुकी थी।
खाना खाते हुए मम्मी ने
बताया कि स्वाति आंटी घर पर
अकेली है इसलिये आज मुझे उनके घर
सोना होगा।
मैंने उन्हें जताया कि मैं
वहाँ अपनी इच्छा से नहीं जा रहा,
हालांकि मन में मैं कितना खुश था यह
तो मैं ही जानता था।
आखिरकार 9 बज ही गए...मैं तुरन्त
घर से निकला और लिफ्ट में सवार
हो कर जल्दी से शशि आंटी के घर
पहुँचा डोरबेल बजाई
तो स्वाति आंटी ने दरवाज़ा खोला।
आंटी अपनी पारदर्शी नाईटी के
ऊपर हाऊसकोट पहने सामने
खड़ी थी। मैं अन्दर ड्रांईगरूम में
जाकर सोफे पर बैठ गया,
आंटी भी दरवाज़ा अन्दर से लॉक कर
के मेरे पास आकर बैठ गई और हम बातें
करने लगे।
मैंने उन्हें बताया कि कैसे मैं उनके बारे
में सोच कर हस्तमैथुन
किया करता था।
बातें करते हुए मैं उनके उरोज़ों पर
हाथ फिराने लगा और अपने होंठ उनके
होंठों पर रख कर चूमने लगा। कुछ देर
में वो अलग हुई, अपने हाऊसकोट और
नाईटी को उतार फेंका और
अपनी पीठ मेरी ओर कर अपने ब्रा के
हुक खोलने को कहा।
मैंने तुरन्त उनके ब्रा के हुक खोल उसे
तन से अलग कर दिया फिर उनके
उरोज़ों को दबाने लगा और उनके
गुलाबी निप्पलों को चूसने लगा।
वो भी आँखें बन्द किये हुए उत्तेजक
आवाजों से माहौल को मादक
बना रही थी।
थोड़ी देर चूसने के बाद मैंने
उनकी पैन्टी खोल एक तरफ फेंकी और
सोफे पर लिटा कर उनकी योनि में
अपनी जीभ घुसा कर चूसने, चाटने
लगा।
अब उनकी दबी मादक आवाज़ें उत्तेजक
सिसकारियों में बदल गई थी-
यस...प्रीत...जीभ और अन्दर
डालो...वाओ...ये तुम बहुत अच्छा करते
हो...प्लीज़ करते रहो...आह...उफ्...ऐसे
ही करो...यू आर माई गुड बोय...मुझे
छोड़ के कभी मत जाना...!
कुछ देर में मुझे अलग कर वो मुझ पर
सवार हो गई जीन्स का बटन खोल
अन्डरवियर में से मेरे लिंग को निकाल
कर चूसने लगी, मैंने भी अपनी टी-
शर्ट और बनियान को उतार फेंका और
सोफे पर बैठ आंटी के बालों में हाथ
फिराते हुए ज़न्नत की सैर करने लगा।
कुछ देर चूसने के बाद स्वाति आंटी उठ
कर बोली- बैडरूम में चलें...?
हम दोनों बैडरूम में गये, मैं बैड पर
जा कर लेट गया और आंटी सोफ्ट
म्यूज़िक ओन कर के मेरे ऊपर सवार
हो गई और मेरे लिंग को फिर हाथ में
लेकर उसके साथ खेलने लगी।
कुछ देर चूसने के बाद स्वाति आंटी बैड
पर टांगें फैला कर लेट गई और मुझे
अपने ऊपर आने का इशारा किया, मैं
भी तुरन्त आंटी की टांगों के बीच
बैठा और अपने लिंग
को उनकी योनि में घुसा दिया और
धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करने लगा।
स्वाति आंटी तकिया पकड़ कर
उत्तेजना से कराहने लगी- वाओ...ओ
माई बैबी...यस...कम ओन...प्रीत...यू
आर ग्रेट...हां...ऐसे ही...करते रहो...!
मैं कूल्हों से प्रहार
बढ़ाता जा रहा था, हर झटके के साथ
मुझे भी स्वर्ग का सुख मिल रहा था।
आंटी मेरे सीने पर हाथ फिराते हुए
सिसकारियाँ भरने लगी- और ज़ोर
से...प्रीत...आह्ह...मज़ा आ
गया...प्लीज़...फ़क मी हार्ड...यू आर
माई बेबी...उफ़्फ़...तुम पहले क्यूँ
नहीं मिले...प्रीत...अब मुझे छोड़ कर
कहीं नहीं जाना...आई लव यू...!
कुछ देर में स्वाति आंटी मुझे नीचे
लिटा कर मुझ पर सवार हो गई और
सैक्स की कमान अपने हाथ में लेते हुए
को लिंग को अपनी योनि में घुसाने के
बाद उछल-उछल कर अन्दर बाहर
करने लगीं, इससे मुझे ज्यादा मज़ा आने
लगा।
आंटी हांफते हुए बोली- फ़िनिश होने
से डरना नहीं...प्रीत...अन्दर
ही छोड़ देना...मैं स्टेरेलाईज़ेशन
करवा चुकी हूँ...कोई प्रोब्लम
नहीं होगी...!
काफी देर बाद मैं चरम पर पहुच कर
स्खलित हो गया, और कुछ देर बाद
ही स्वाति आंटी भी मादक सीत्कारें
करते हुए ओरगेज़्म पर पहुँच गई और
शिथिल होकर मेरे पास लेट गई।
थोड़ी देर लेटने के बाद
स्वाति आंटी उठी और संगीत बंद कर
टायलेट में जाकर
अपनी योनि की सफाई कर के मेरे
पास आकर चिपक कर लेट गईं और हम
दोनों नींद के आगोश में खो गये।
सुबह उठा तो आंटी चाय लिये सामने
खड़ी मुस्कुरा रही थी, हमने चाय पी,
फिर साथ में शावर लिया और मैं कपड़े
पहन कर शाम को मिलने के प्रोमिस
और गुडबाय किस के साथ अपने घर
की ओर बढ़ गया।
उम्र में मुझसे चार साल छोटा था पर
कुछ सालों से साथ क्रिकेट खेलने, साथ
स्कूल आने-जाने से
हमारी दोस्ती गहरी हो गई थी और
इससे दोनों के परिवारों में
भी घनिष्ठता हो गई थी। हम रोज़
एक दूसरे के घर आते-जाते थे। मैं
अपना होमवर्क भी उसके साथ उसके
घर पर ही करता था,
वहीं खेलता भी था।
कुल मिलाकर मेरा ज्यादातर समय
उसके घर पर ही बीतता था। मीत के
पापा शरद अंकल का मुंबई और दुबई में
हेण्डीक्राफ्ट के एक्स्पोर्ट
का अच्छा बिज़नेस था। इस सिलसिले
में वो लगभग हर सप्ताह दुबई आते-
जाते थे। मीत
की मम्मी स्वाति आंटी 35-36
साल की पढ़ी लिखी, हाई
सोसायटी की समझदार महिला थी।
सुगठित शरीर, लम्बी टागें, उन्नत
उरोज़ एवं बडे-बडे नितम्बों से
सुशोभित स्वाति आंटी इतनी सुन्दर
थी कि उनके आगे कोई
अप्सरा भी फीकी पड़े।
चाहे वो साड़ी पहनें, सलवार
कुर्ता पहनें या कोई मॉडर्न
आउटफिट, उन्हें देख कर
किसी का भी ईमान
डगमगा सकता था, फ़िर
मेरी तो उम्र ही बहकने
की थी इसलिये मैं कभी-
कभी उनकी कल्पना कर के हस्तमैथुन
भी करता था।
खैर, उस साल दिसम्बर
की छुट्टियों में मीत
अपनी सौम्या बुआ के पास दुबई अपने
पापा के साथ जाने वाला था।
24 दिसम्बर को जब मैं मीत के घर
गया तब अकंल, आँटी ने मुझे कहा- भले
मीत यहाँ नहीं हो, तो भी तुम रोज़
हमारे घर आना, अपना होमवर्क
भी यहीं करना, वीडियो गेम
खेलो और टीवी देखो।
वे दोनों यह चाहते थे कि मैं उनके घर
ज्यादा से ज्यादा समय बिताऊँ
जिससे स्वाति आंटी का मन
भी लगा रहेगा। अंकल ने मुझे घर
का ख्याल भी रखने के लिये कहा जिसे
मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
अगले दिन अंकल और मीत सुबह
जल्दी दुबई के लिये रवाना हो गये।
छुट्टियाँ तो थी पर थोड़ा होमवर्क
भी मिला था, इसलिये सुबह मैं लगभग
9 बजे जरूरी किताबें बैग में लेकर मीत
के घर चला आया। तब
स्वाति आंटी नीले गहरे गले वाले
प्रिन्टेड गाऊन के ऊपर कशीदे वाले
हाउसकोट में गज़ब की सुन्दर लग
रही थी।
मुझे मीत के स्टडी रूम में बिठा कर
थोड़ी देर मेरे पास बैठकर इधर-उधर
की बातें करने के बाद वो अपने काम
से रसोई में चली गई और
कामवाली बाई को काम समझाकर
उन्होंने मुझे आकर कहा- मैं नहाने
जा रही हूँ, जब
कामवाली अपना काम करके
चली जाये तो घर का दरवाज़ा अन्दर
से बन्द कर लेना।
थोड़ी देर बाद जब कामवाली बाई
अपना काम पूरा करके चली गई, मैंने
उठ कर घर का दरवाज़ा बन्द कर
दिया। अब मैं और स्वाति आंटी घर में
अकेले थे, बाथरूम से आंटी की गुनगुनाने
की आवाज़ से माहौल की मादकता बढ़
रही थी। अचानक आंटी के
प्रति मेरी वासना बलवती होने
लगी।
मीत के कमरे और स्वाति आंटी के
बेडरूम के बीच में एक कोमन
दरवाज़ा था। मैंने चुपचाप जाकर उसे
थोड़ा खोल दिया ताकि मैं
आंटी को बिना कपड़ों के देख सकूँ।
थोड़ी बाद स्वाति आंटी कोई गीत
गुनगुनाते हुए बाथरूम से निकली और
अपने गीले बदन को पौंछने लगी। मैं
दबे पांव उस थोड़े खुले दरवाज़े
की तरफ गया और वहाँ बैठ कर जन्नत
का नज़ारा देखने लगा।
स्वाति आंटी जितनी कपड़ों में सुन्दर
दिखती थी उससे कहीं ज्यादा कामुक
वो बिना कपड़ों के दिख रही थी।
गोरे-गोरे मांसल उरोज़ों पर उभरे
हुए गुलाबी निप्पल गज़ब लग रहे थे,
वहीं पतली कमर के नीचे
दोनों जाघों के बीच हल्के
बालों वाली गुलाबी योनि तो
कयामत ढा रही थी।
तौलिए से बदन पोंछने के बाद उन्होंने
अपनी बग़लों और गले पर डेओडोरेंट
स्प्रे किया, सफेद रंग
की लिन्गरी पहनी और
गुलाबी पेटीकोट भी ऊपर से
पहना फिर उन्होंने सफेद
ब्रा पहनी।
और मैं चुपचाप उठ कर अपनी जगह
आकर बैठ गया और मैगज़ीन पढ़ने
लगा पर आखों में
स्वाति आंटी का मादक बदन ही घूम
रहा था।
तभी स्वाति आंटी की आवाज़ आई-
प्रीत क्या कर रहे हो? कोई
आया तो नहीं था?
मैं बोला- 'आंटी... मैं मैगज़ीन पढ़
रहा हूँ और बाई के जाने के बाद कोई
नहीं आया था... मैंने
दरवाजा भी बन्द कर दिया है।
आंटी ने कहा- कुछ नहीं कर रहे
हो तो एक बार इधर आओ, मुझे कुछ
काम है।
मैं उठ कर उनके बैडरूम में गया,
स्वाति आंटी ब्रा और पेटीकोट में
खड़ी थी और कंधे के ऊपर रखे तौलिये
से ब्रा ढकी हुई थी। वो बोली-
सर्दी से मेरी पीठ बहुत ड्राई
हो रही है, थोड़ी माईश्चराइज़र
क्रीम लगा दोगे?...वहाँ ड्रेसिंग
टेबल के ऊपर रखी है।
मैं मन ही मन चहकते हुए बोला-
अभी लाया आंटी...!
और ड्रेसिंग टेबल के ऊपर
रखी निविया की बोतल ले आया। तब
तक स्वाति आंटी बैड पर उल्टी लेट
चुकी थी, अब तौलिया उनकी पीठ
पर ढका था। सच कहूँ तो उस वक्त मैं
अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझ
रहा था कि मुझे उनके बदन को छूने
का मौका मिलेगा।
उन्होंने मुझे बैड पर उनके बगल में बैठ
कर तौलिया हटा कर पीठ पर क्रीम
लगाने को कहा।
मैंने तुरन्त तौलिया हटा कर पहले
उनकी चिकनी पीठ पर हाथ
फिराया फिर क्रीम हाथ में लेकर
लगाने लगा।
तभी वो खुद बोलीं- ब्रा का हुक
खोल दो, नहीं तो क्रीम से
गीली हो जायेगी।
मैंने तुरन्त दोनों हाथों से ब्रा के हुक
खोल कर उनकी उरोज़ों को आज़ाद कर
दिया और हल्के हाथ से उनकी नर्म
चिकनी पीठ पर क्रीम लगाने लगा।
मुझे तो स्वर्ग का आनन्द मिल
रहा था, शायद
उनको भी अच्छा महसूस
हो रहा था तभी वो बीच-बीच में
'आह' 'उह' की दबी आवाज़ें कर
रहीं थी। एकाध बार मेरा हाथ
गलती से उनके उरोज़ों से छू
गया तो मैं सिहर उठा।
कुछ देर में वो माहौल
की चुप्पी तोड़ते हुए बोली-
प्रीत...जब मैं कपड़े पहन रही थी तब
तुम स्टडी रूम से क्या देख रहे थे?
मैं घबराकर बोला-
नहीं तो...आंटी मैंने कहाँ कुछ देखा...!
शायद उन्होंने आईने में मुझे अपने
आपको देखते हुए देख लिया पर मुझे
इसका पता नहीं चला।
स्वाति आंटी मुस्कुराते हुए बोली-
झूठ मत बोलो...मैंने तुम्हें मिरर में देख
लिया था!
मैं एकदम सकपका गया, मुझसे कुछ
बोलते नहीं बन रहा था...मैं सिर
नीचे कर बैठा रहा।
वो फिर हंसते हुए बोली- क्या देख
रहे थे...ये...?
कहते हुए मेरी तरफ घूम गई।
अब उनके गोरे उरोज़ मेरे ठीक सामने
थे और दिल कर रहा था उनको मसल
दूं, पर डर रहा था।
आंटी फिर बोली- डरो मत...टच
करो...!
मैं फिर भी डर रहा था...तब उन्होंने
मेरा हाथ पकड़ कर अपने गर्म
उरोज़ों पर रख दिया। मुझे तो जैसे
स्वर्ग मिल गया, मैं धीरे-धीरे
दोनों हाथों से उनके गोरे-गोरे
मांसल उरोज़ों को दबाने लगा।
स्वाति आंटी ने मादक स्वर में कहा-
धीरे नहीं...ज़ोर से दबाओ...और मुँह में
ले कर चूसो...आहह...वाह...और ज़ोर
से...उफ़!
अब मैं भी खुल कर उनके उरोज़ों दबाने
लगा और उनके
गुलाबी निप्पलों को मुँह में लेकर चूसने
लगा था। अचानक मुझे हटा कर
वो बैठ गई और मेरी टी-शर्ट पकड़
कर ऊपर कर दी, मैंने भी हाथ
उठा कर टी-शर्ट व बनियान उतार
फेंकी और उनको सीने से
लगा लिया और उनके कन्धों, गर्दन
और होठों को चूमने, चाटने लगा।
मुझे अनाड़ीपन से चूमते, चाटते हुए
देखकर हंसते हुए स्वाति आंटी ने पूछा-
पहले कभी किया है...?
मैंने शर्माते हुए ज़वाब दिया-
नहीं...पर ब्लू फिल्म में बहुत बार
देखा है।
यह सुनकर उन्होंने मुझे पकड़ कर बैड
पर लिटाया और मेरे घुटनों पर सवार
हो कर उन्होंने मेरी पैन्ट के हुक खोले,
फिर उसे खोल कर दूर फेंक दी और
अपने हाथ मेरे अन्डरवियर के ऊपर मेरे
कठोर लिंग पर फिराने लगी।
फिर स्वाति आंटी ने धीरे से
मेरा अन्डरवियर खोल कर लिंग
को बाहर निकाला और उसे चूमने,
चूसने लगी। सचमुच...वो पल मेरे जीवन
के सबसे हसीन पल थे। थोड़ी देर चूसने
के बाद वो घुटनों के बल बैठी और
अपने पेटीकोट की डोरी खोलकर उसे
उतार फेंका। अब वो केवल पैन्टी में
थी, मैंने उन्हें बाहों में भरकर
लिटा दिया और
उनकी पैन्टी को चूमने लगा।
आंटी सिसकारते हुए बोली-
प्लीज़...प्रीत...पैन्टी खोल कर
चूसो ना।''
मैं बिना वक्त गंवाये दोनों हाथों से
पैन्टी खोल कर
स्वाति आंटी की गुलाबी मखमली
योनि में अपनी ज़ीभ डाल दी और
होंठों से चूस कर रस पीने लगा।
वो भी दोनों हाथों से मेरे बालों पर
हाथ फिराते हुए मेरा सिर अपने अंदर
दबाने लगी और उत्तेजना के साथ
कराहने लगी- आह्ह...प्रीत...प्लीज़…
और ज़ोर से...उफ़...और अन्दर तक
डालो...अब तक तुम
कहां थे...प्लीज़...क्रश मी हार्ड…!
कहते हुए उन्होंने मुझे अपने ऊपर लेकर
मेरे दोनों हाथ पकड़ कर अपने
उरोज़ों पर रख लिये और अपनी टांगे
चौड़ी कर के कहा-
प्लीज़...प्रीत...फक मी...अब
नहीं सहा जाता!''
मैंने तुरन्त अपने लिंग को पकड़ कर
स्वाति आंटी की योनि के छेद पर
रखा और झटके से अन्दर घुसा दिया,
फिर धीरे-धीरे कूल्हों से प्रहार
करने लगा।
हर झटके के साथ आंटी की मादक चीख
से मेरा जोश बढ़ता जा रहा था,
आंटी उत्तेजना से चीख रही थी-
आह्ह...वाओ...यस...वेरी गुड...और ज़ोर
से...करते रहो...तुम सच में बहुत अच्छे
हो प्रीत…!
मैं धक्के लगाता रहा पर मैं
थोड़ी ही देर में चरम पर था इसलिये
आंटी से बोला- आंटी...मैं फिनिश होने
वाला हूं...क्या करूं...?
उत्तेजना में स्वाति आंटी बोली-
रुको नहीं...प्रीत...करते
रहो...प्लीज़...और जोर
से...आह...अन्दर ही छोड़
देना...रुकना नहीं!
हालांकि मैं कई सालों से हस्तमैथुन
करता था पर यह मेरा पहला सैक्स
अनुभव था इसलिये उत्तेजना में
ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया झटके
देते हुए स्खलित हो गया पर
स्वाति आंटी अब तक चरम पर
नहीं पहुँची थी इसलिये मैंने प्रहार
जारी रखे। कुछ समय तक और
प्रहारों के बाद मादक
सिसकारियों के साथ
स्वाति आंटी भी अपने चरम पर पहुँच
कर निढाल हो गई और मैं भी उनसे
अलग होकर पास में ही लेट गया,
आंटी ने अपना सिर मेरे सीने पर रख
दिया और लेटी रही।
उन्होंने पास रखी रजाई हमारे ऊपर
डाल ली और सैक्स की थकान के कारण
हम दोनों कब नींद के आग़ोश में चले
गये पता ही नहीं चला।
लगभग डेढ घन्टे सोने के बाद
स्वाति आंटी की आवाज से मेरी नींद
खुली तो मैंने देखा कि वो हाउसकोट
पहने मेरे पास पलंग पर
बैठी मुस्कुरा रही थी पास में चाय
की ट्रे रखी थी।
वो बोली- जल्दी से उठ कर चाय
पी लो।
मैं रजाई में बिना कपड़ों के था और
शर्म के मारे उनसे नज़रें
नहीं मिला पा रहा था, इसलिये
धीरे से बोला- आंटी...मेरे कपड़े...?
स्वाति आंटी खिलखिला कर हंसते हुए
बोली- अभी तक शरमा रहे हो...पहले
चाय पी लो...फिर शावर लेकर कपड़े
भी पहन लेना...ठीक है...?
मैं भी आज्ञाकारी बालक के जैसे तुरन्त
उठ कर बैठ गया। वो सामने
कुर्सी पर बैठ गई, उन्होंने अपनी और
मेरी चाय सर्व की और मादक स्वर में
बोलीं- प्रीत...आज बहुत टाईम बाद
किसी का साथ इतना एन्जोय
किया है...सच में बहुत
मजा आया...वरना...!
कह कर स्वाति आंटी रुक गई, फिर खुद
ही स्पष्ट करते हुए बोलीं- वैसे
तो...मीत के डैडी बैड में अच्छे हैं
पर...बिज़नेस टूअर्स के बिज़ी शेड्यूल के
कारण कभी तो उनको टाईम
ही नहीं मिलता...और
कभी वो इतना थके होते हैं कि उनमें
सैक्स के लिये ताकत
ही नहीं बचती...।
"खैर...अब तुम मिल गये हो, तो मुझे
किसी की जरूरत ही नहीं...तुम सचमुच
बहुत अच्छे हो...अब उठ कर
नहा लो...तब तक मैं खाने को कुछ
बना लेती हूँ...बहुत भूख
लगी है...तुमको भी भूख लगी होगी।"
ऐसे कह कर उन्होंने एक
तौलिया मेरी तरफ उछाल
दिया जिसे लपेट कर मैं बाथरूम
की ओर बढ़ गया।
बाथरूम में घुसने से पहले मैंने
स्वाति आंटी का हाथ पकड़ कर कहा-
आप भी आओ ना...साथ में शावर लेंगे।
आंटी ने कहा- यू
नोटी बोय...अभी नहीं...अभी तुम
शावर ले कर आओ...फिर हम लंच कर लेते
हैं और वैसे भी अगले सात दिन मैं और
तुम बहुत एन्जोय करने वाले हैं।
कह कर वो हाथ छुड़ा कर रसोई
की ओर बढ़ गई और मैं बाथरूम में
शावर लेने चला गया। जब
लौटा तो बैड पर मेरे कपड़े रखे थे
जिन्हें पहन कर मैं ड्राईंग रूम में आकर
सोफे पर बैठ गया,
तभी स्वाति आंटी सलवार कुर्ते के
ऊपर गर्म जैकेट पहने रसोई से लंच
की ट्रे लिये बाहर आई और मुझे
डाईनिंग टेबल पर आने को कहा।
फिर हम दोनों साथ बैठ कर लंच करने
लगे, तब आंटी बोली- प्रीत...मैंने
तुम्हारी मम्मी से तुम्हारे रात
को मेरे पास रुकने की बात कर
ली है...अभी लंच लेकर तुम घर जाकर
अपना वहाँ का काम निपटा लो...।
"और हाँ...थोड़ा आराम भी कर
लेना...आज सारी रात मैं तुमको सोने
नहीं दूँगी!'' स्वाति आंटी ने
शरारती अंदाज़ में कहा।
लंच लेकर मैं उठा, हाथ धोये और
स्वाति आंटी को बाहों में भर कर
होंठों से होंठ मिला कर गहरा चुम्बन
लिया और रात को मिलने
की प्रोमिस के साथ अपने घर
चला आया, पर मेरा मन तो रात के
इन्तज़ार में अधीर हुआ जा रहा था।
थोड़ी थकान महसूस हुई तो सो गया।
दो घन्टे बाद मम्मी ने
उठाया तो उठ कर दोस्तों के साथ
खेलने चला गया, जब शाम हुई तो घर
लौट कर थोड़ी देर टीवी पर मैच
देखा तब तक मम्मी शाम के खाने के
लिये आवाज़ लगा चुकी थी।
खाना खाते हुए मम्मी ने
बताया कि स्वाति आंटी घर पर
अकेली है इसलिये आज मुझे उनके घर
सोना होगा।
मैंने उन्हें जताया कि मैं
वहाँ अपनी इच्छा से नहीं जा रहा,
हालांकि मन में मैं कितना खुश था यह
तो मैं ही जानता था।
आखिरकार 9 बज ही गए...मैं तुरन्त
घर से निकला और लिफ्ट में सवार
हो कर जल्दी से शशि आंटी के घर
पहुँचा डोरबेल बजाई
तो स्वाति आंटी ने दरवाज़ा खोला।
आंटी अपनी पारदर्शी नाईटी के
ऊपर हाऊसकोट पहने सामने
खड़ी थी। मैं अन्दर ड्रांईगरूम में
जाकर सोफे पर बैठ गया,
आंटी भी दरवाज़ा अन्दर से लॉक कर
के मेरे पास आकर बैठ गई और हम बातें
करने लगे।
मैंने उन्हें बताया कि कैसे मैं उनके बारे
में सोच कर हस्तमैथुन
किया करता था।
बातें करते हुए मैं उनके उरोज़ों पर
हाथ फिराने लगा और अपने होंठ उनके
होंठों पर रख कर चूमने लगा। कुछ देर
में वो अलग हुई, अपने हाऊसकोट और
नाईटी को उतार फेंका और
अपनी पीठ मेरी ओर कर अपने ब्रा के
हुक खोलने को कहा।
मैंने तुरन्त उनके ब्रा के हुक खोल उसे
तन से अलग कर दिया फिर उनके
उरोज़ों को दबाने लगा और उनके
गुलाबी निप्पलों को चूसने लगा।
वो भी आँखें बन्द किये हुए उत्तेजक
आवाजों से माहौल को मादक
बना रही थी।
थोड़ी देर चूसने के बाद मैंने
उनकी पैन्टी खोल एक तरफ फेंकी और
सोफे पर लिटा कर उनकी योनि में
अपनी जीभ घुसा कर चूसने, चाटने
लगा।
अब उनकी दबी मादक आवाज़ें उत्तेजक
सिसकारियों में बदल गई थी-
यस...प्रीत...जीभ और अन्दर
डालो...वाओ...ये तुम बहुत अच्छा करते
हो...प्लीज़ करते रहो...आह...उफ्...ऐसे
ही करो...यू आर माई गुड बोय...मुझे
छोड़ के कभी मत जाना...!
कुछ देर में मुझे अलग कर वो मुझ पर
सवार हो गई जीन्स का बटन खोल
अन्डरवियर में से मेरे लिंग को निकाल
कर चूसने लगी, मैंने भी अपनी टी-
शर्ट और बनियान को उतार फेंका और
सोफे पर बैठ आंटी के बालों में हाथ
फिराते हुए ज़न्नत की सैर करने लगा।
कुछ देर चूसने के बाद स्वाति आंटी उठ
कर बोली- बैडरूम में चलें...?
हम दोनों बैडरूम में गये, मैं बैड पर
जा कर लेट गया और आंटी सोफ्ट
म्यूज़िक ओन कर के मेरे ऊपर सवार
हो गई और मेरे लिंग को फिर हाथ में
लेकर उसके साथ खेलने लगी।
कुछ देर चूसने के बाद स्वाति आंटी बैड
पर टांगें फैला कर लेट गई और मुझे
अपने ऊपर आने का इशारा किया, मैं
भी तुरन्त आंटी की टांगों के बीच
बैठा और अपने लिंग
को उनकी योनि में घुसा दिया और
धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करने लगा।
स्वाति आंटी तकिया पकड़ कर
उत्तेजना से कराहने लगी- वाओ...ओ
माई बैबी...यस...कम ओन...प्रीत...यू
आर ग्रेट...हां...ऐसे ही...करते रहो...!
मैं कूल्हों से प्रहार
बढ़ाता जा रहा था, हर झटके के साथ
मुझे भी स्वर्ग का सुख मिल रहा था।
आंटी मेरे सीने पर हाथ फिराते हुए
सिसकारियाँ भरने लगी- और ज़ोर
से...प्रीत...आह्ह...मज़ा आ
गया...प्लीज़...फ़क मी हार्ड...यू आर
माई बेबी...उफ़्फ़...तुम पहले क्यूँ
नहीं मिले...प्रीत...अब मुझे छोड़ कर
कहीं नहीं जाना...आई लव यू...!
कुछ देर में स्वाति आंटी मुझे नीचे
लिटा कर मुझ पर सवार हो गई और
सैक्स की कमान अपने हाथ में लेते हुए
को लिंग को अपनी योनि में घुसाने के
बाद उछल-उछल कर अन्दर बाहर
करने लगीं, इससे मुझे ज्यादा मज़ा आने
लगा।
आंटी हांफते हुए बोली- फ़िनिश होने
से डरना नहीं...प्रीत...अन्दर
ही छोड़ देना...मैं स्टेरेलाईज़ेशन
करवा चुकी हूँ...कोई प्रोब्लम
नहीं होगी...!
काफी देर बाद मैं चरम पर पहुच कर
स्खलित हो गया, और कुछ देर बाद
ही स्वाति आंटी भी मादक सीत्कारें
करते हुए ओरगेज़्म पर पहुँच गई और
शिथिल होकर मेरे पास लेट गई।
थोड़ी देर लेटने के बाद
स्वाति आंटी उठी और संगीत बंद कर
टायलेट में जाकर
अपनी योनि की सफाई कर के मेरे
पास आकर चिपक कर लेट गईं और हम
दोनों नींद के आगोश में खो गये।
सुबह उठा तो आंटी चाय लिये सामने
खड़ी मुस्कुरा रही थी, हमने चाय पी,
फिर साथ में शावर लिया और मैं कपड़े
पहन कर शाम को मिलने के प्रोमिस
और गुडबाय किस के साथ अपने घर
की ओर बढ़ गया।
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